तुमुन् प्रत्यय

 🏵️ तुमुन् प्रत्यय 🏵️

हिन्दी भाषा में हम जिस अर्थ को "के लिए" के द्वारा प्रकट करते हैं, संस्कृत में वही अर्थ धातुओं के साथ तुमुन्
प्रत्यय जोड़ कर अभिव्यक्त किया जाता है। संज्ञा एवं सर्वनाम शब्दों से यही अर्थ चतुर्थी विभक्ति तथा अर्थम् जोड़कर भी प्रकट किया जाता है। 
जैसे "जाने के लिए" इस हिन्दी वाक्यांश को संस्कृत में तीन प्रकार से लिख सकते हैं। यथा-
गन्तुम्, 
गमनाय, 
गमनार्थम्।
👉"तुमुन्" प्रत्यय का तुम् ही शेष रहता है। इस प्रत्यय का प्रयोग ऐसे स्थलों पर होता है; जहाँ एक क्रिया के लिए
कोई दूसरी क्रिया की जाती है, तो जिस क्रिया के लिए दूसरी क्रिया की जाती है, उस क्रिया (धातु) से तुमुन् प्रत्यय जोड़ा जाता है।
जैसे-भक्त देवदर्शन के लिए जाता है। इस वाक्य में जाने की क्रिया देखने (दर्शन करने) की क्रिया के लिए की गई है। अतः यहाँ देखना क्रिया अर्थात् दृश् धातु के साथ "तुमुन्' प्रत्यय जुड़ेगा। अत: उपर्युक्त वाक्य का अनुवाद
होगा-भक्त: देवं द्रष्टुम् गच्छति।

👉धातुओं से तुमुन् प्रत्यय जोड़ने पर धातुओं के अन्तिम स्वर तथा उपधा (अन्तिम वर्ण से पूर्व वर्ण) को गुण अर्थात्
इ, ई को ए, उ ऊ को ओ, तथा ऋको अर् हो जाता है।
जैसे भू + तुमुन् = भवितुम्, यहाँ भू के ऊ को ओ होकर
सन्धिनियम से उसे अव् हुआ तथा इ का आगम होकर भवितुम् बना है।
👉लिख + तुमुन् = लेखितुम्, 
👉 तृप् + तुमुन् =तार्पितुम् आदि।

🌼धातुओं के तुमुन् प्रत्ययान्त रूप🌼
धातु 🌺 तुमुनन्त रूप 🌺 अर्थ
पठ्।    पठितुम्।         पढ़ने के लिए
रक्ष      रक्षितुम्।         रक्षा करने के लिए
कृ       कर्तुम्।            करने के लिए
नम्      नन्तुम्।           नमस्कार करने के लिए
गम्      गन्तुम्।           जाने के लिए
पच्      पक्तुम्।           पकाने के लिए
पत्      पतितुम्।         गिरने के लिए
नृत्      नर्तितुम्          नाचने के लिए
हस्      हसितुम्।        हँसने के लिए
क्रीड्     क्रीडितुम्।      खेलने के लिए
पा        पातुम्           पीने के लिए
कथ्      कथयितुम्      कहने के लिए
भक्ष      भक्षयितुम्।।   खाने के लिए
चिन्त्     चिन्तयितुम्।   सोचने के लिए
ताड्      ताडयितुम्।।   पीटने के लिए
वद्        वदितुम्।।      बोलने के लिए
श्रु         श्रोतुम्।         सुनने के लिए
दुह्        दोग्धुम्।        दुहने के लिए
लिख।    लेखितुम्।      लिखने के लिए
मृ          मर्तुम्           मरने के लिए
लभ्।      लब्धुम्         पाने के लिए
यज्।।     यष्टुम्।         यज्ञ करने के लिए
जि।        जेतुम्।        जीतने के लिए
अद्।       अतुम्।        खाने के लिए
भिद्।       भेत्तुम्         तोड़ने के लिए
गै            गातुम्।        गाने के लिए
हा           हातुम्।        छोड़ने के लिए
त्यज्।      त्यक्तुम्।       छोड़ने के लिए
स्ना।        स्नातुम्        स्नान करने के लिए
स्था।        स्थातुम्        रुकने के लिए
🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼🏵️🏵️🏵️🏵️🏵️🏵️🏵️

Comments

  1. Simran Devi
    1901hi077
    major Hindi
    2nd year

    ReplyDelete
  2. Kalpna choudhary Roll no 1901HI065

    ReplyDelete
  3. This comment has been removed by the author.

    ReplyDelete

Post a Comment

Popular posts from this blog

ईशावास्योपनिषद 18 मंत्र

महाकवि दण्डी का व्यक्तित्व एवं कृतित्व जीवन-चरित-

भर्तृहरि की रचनाएँ