नीतिशतक2️⃣9️⃣🕉️3️⃣0️⃣

 🕎🕎नीतिशतक2️⃣9️⃣🕉️3️⃣0️⃣🕎🕎

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असन्तो नाभ्यर्थ्या सुहृदपि न याच्यः कृशधनः, 

प्रियान्याय्या वृत्तिमलिनमसुभङ्गेऽप्यसुकरम्। 

विपद्युच्चैः स्थेयं पदमनुविधेयं च महताम्,

सतां केनोद्दिष्टं विषममसिधाराव्रतमिदम्।। 29 ।। 

,🇮🇳अन्वयः -असन्तः न अभ्यर्थ्याः, कृशधनः सुहृद् अपि न याच्यः प्रियान्याय्या च वृत्तिः, असुभंगे अपि मलिनम् असुकरम्, विपदि उच्चैः स्थेयम्, महतां च पदम् अनुविधेयम् इदं विषमम् असिधाराव्रतं सतां केन उद्दिष्टम् ?

🇮🇳शब्दार्थ एवं व्याकरण-असन्तः = दुर्जन। अभ्यर्थ्याः न = प्रार्थना के योग्य नहीं होते। कृशधनः = निर्धन। सुहृद् अपि = मित्र से भी। न याच्यः = याचना नहीं करनी चाहिए। च = और। प्रिया = अच्छी। न्याय्या = न्याय संगत। वृत्तिः = व्यवहार। असुभंगे = (असुनांभंग:-असुभंगः तस्मिन् षष्ठी त०पु० समास) प्राणान्त की स्थिति में। अपि = भी। मलिनम् = निन्दनीय कार्य। असुकरम् = करना आसान नहीं होता। विपदि = आपत्काल में । उच्चैः स्थेयम् = धैर्य धारण करना। महताम् = महापुरुषों का। पदम् = पदचिह्न। अनुविधेयम् = अनुसरण करने चाहिए। इदम् = यह। विषमम् = कठिन (दुर्गम)। असिधाराव्रतम् = तलवार की धार पर चलने के समान नियम। सताम् = सज्जनों को। केन = किसने। उद्दिष्टम् = बताया।

🇮🇳हिन्दी-अनुवाद-सज्जनों के सहज स्वभाव का वर्णन करते हुए भर्तृहरि जी कहते हैं कि दुष्टों के आगे प्रार्थना न करना, निर्धन मित्र से माँगना नहीं, मधुर एवं न्याय संगत व्यवहार करना, प्राणों पर संकट आने पर भी निन्दनीय कर्म को सहज न मानना, विपत्ति में धीर बने रहना और महापुरुषों के मार्ग का अनुसरण करना। इस प्रकार का तलवार की धार पर चलने के समान कठिन नियम न जाने सज्जनों को किसने सिखाया है ? क्योंकि वे विना कहे ही उपर्युक्त प्रकार का व्यवहार करते हैं।

🇮🇳भावार्थ यह कि सोच समझकर व्यवहार करना, किसी भी स्थिति में निन्दनीय कार्य न करना तथा विपत्काल में धीर बने रहना सज्जनों का जन्मजात स्वभाव होता है।

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क्षुत्क्षामोऽपि जराकृशोऽपि शिथिल प्रायोऽपि कष्टां दशा 

मापन्नोऽपि विपन्नदीधितिरपि प्राणेषु नश्यत्स्वपि।

 मत्तेभेन्द्र विभिन्नकुम्भपिशितग्रासैकबद्धस्पृहा,

 किं जीर्णं तृणमत्ति मानमहतामग्रेसरः केसरी।। 30।।

🇮🇳अन्वयः-क्षुत्क्षामः अपि जराकृशः अपि शिथिलप्रायः अपि कष्टाम् दशाम् आपन्नः अपि विपन्नदीधितिः अपि प्राणेषु नश्यत्सु अपि मत्तेभेन्द्र भिन्नकुम्भपिशितग्रासैकबद्धस्पृहः मानमहताम् अग्रेसर: केसरी किं जीणं तृणम् अत्ति ?

🇮🇳शब्दार्थ एवं व्याकरण-क्षुत्क्षामः = भूख से क्षीण। अपि = भी। जराकृशः = (जरया कृशः तृतीया त० पु० स०) वृद्धावस्था के कारण कमज़ोर हुआ। अपि = भी। शिथिलप्रायः अपि = दुर्बल हुआ भी। कष्टाम् दशाम् = दुःखपूर्ण दशा को यानि दुर्दशा को। आपन्नः अपि = प्राप्त हुआ भी। विपन्नदीधितिः अपि विपन्न = नष्ट हुई। दीधिति अपि = तेज़ वाला भी। प्राणेषु = प्राणों के। नश्यत्सु अपि = नष्ट होते हुए भी। मत्तेभेन्द्र = मदमस्त गजराज के (मत्त + इभ + इन्द्र गुणसन्धि) विभिन्न = विदीर्ण किये हुए। कुम्भ = मस्तक। पिशितग्रास = मांस के ग्रास में। बद्ध = लगी हुई। एकस्पृहः = एक मात्र इच्छा वाला (मत्तः यः इभेन्द्रः सः मत्तेभेन्द्रः मत्तभेन्द्रस्य विभिन्नकुम्भस्य पिशितग्रासेषु बद्धा एका स्पृहा यस्य सः मत्तेभेन्द्र विभिन्नकुम्भ पिशितग्रासैकबद्धस्पृहः)। मानमहताम् = स्वाभिमानियों का। अग्रेसरः अग्रणी। केसरी = सिंह। किम् = क्या (कभी) तृणम् = घास। अत्ति = खाता है।

🇮🇳हिन्दी-अनुवाद-स्वाभिमानियों के स्वाभिमान का वर्णन करने के लिए भर्तृहरि जी सिंह का दृष्टान्त देते हुए कहते हैं कि भूख से पीड़ित, वृद्धावस्था के कारण निर्बल हुआ, ढीला-ढाला भी तथा कष्टपूर्ण दुर्दशा को प्राप्त हुआ भी, हुए तेज़ वाला भी, प्राणांत की स्थिति आने पर भी मदोन्मत्त हाथियों के मस्तक को भेद कर उनके मांस के ग्रास खाने की एक मात्र इच्छा वाला स्वाभिमानियों का अग्रणी शेर क्या कभी सूखा घास खाता है ? अर्थात् कभी नहीं।

🇮🇳भावार्थ यह है कि स्वाभिमानी व्यक्ति कष्टपूर्ण स्थिति में भी अपने स्वभाव का परित्याग नहीं करते हैं। यही उनके बड़प्पन का हेतु माना जाता है।

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Comments

  1. Poonam devi sr no 23 major political science

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  2. Name Akshita Kumari Major Political Science Sr.No. 70

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  4. Name Akshita Kumari Major Political Science Sr.No. 70

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    Sr no-73

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  12. Chetna choudhary Major pol science minor Hindi sr no 13

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  15. Name Priyanka devi, Major History, Ser No 30...

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    Sr. No.. 69
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  18. Name rahul kumar
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  19. Name jyotika Kumari Major hindi Sr no 5.

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  20. Name: anjlee
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  21. Name Simran kour
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  22. Divya Kumari
    Major political science
    Sr.no 60.

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  23. Sr.no.49
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  24. Name Simran kour
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    Sr. No. 50

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