नीतिशतक2️⃣0️⃣🕉️2️⃣1️⃣🕉️2️⃣2️⃣

 🕉️नीतिशतक2️⃣0️⃣🕉️2️⃣1️⃣🕉️2️⃣2️⃣🕎🕎

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केयूराणि न भूषयन्ति पुरुषं हारा न चन्द्रोज्वला:, 

न स्नानं न विलेपनं न कुसुमं नाऽलंकृता मूर्धजाः।

 वाण्येका समलंकरोति पुरुषं या संस्कृता धार्यते,

 क्षीयन्ते खलु भूषणानि सततं वारभूषणं भूषणम्॥20॥

🇮🇳अन्वयः-न केयूराणि, न चन्द्रोज्ज्वलाः हाराः, न स्नानं, न विलेपनं, न कुसुमं, न अलंकृता मूर्धजाः पुरुषं भूषयन्ति। या संस्कृता धार्यते, सा एकावाणी पुरुषं समलङ्करोति। भूषणानि खलु क्षीयन्ते, वाग्भूषणं भूषणम् ।

🇮🇳शब्दार्थ एवं व्याकरण-न केयूराणि = न तो बाजूवन्द (कंगन)। न चन्द्रोज्ज्वला: = (चन्द्र + उज्ज्वला: गुणसन्धि) न ही चन्द्रमा के समान चमकीले। हाराः = हार। न स्नानम् = न ही स्नान । न विलेपनम् = न ही चन्दन आदि का लेप। न कुसुमम् = न ही बालों या कण्ठ में माला रूप में धारण किये हुए फूल। न अलंकृता = और न ही सजाये संवारे हुए। मूर्धजाः = बाल (मूर्धनि जायन्ते इति मूर्धजा:-सिर पर उगने वाले)। पुरुषम् = मनुष्य को। भूषयन्ति = सजाते हैं। या = जो। संस्कृता = परिष्कृत की हुई शुद्ध एवं सत्याधारित। धार्यते = धारण की जाती है (उपयोग में लायी जाती है)। सा = वह। एकावाणी = एकमात्र वाणी ही। पुरुषम् = मनुष्य को। समलङ्करोति = भलीभान्ति अलंकृत करती है। भूषणानि = आभूषण। खलु = निश्चित रूप से। क्षीयन्ते नष्ट हो जाते हैं। वाग्भूषणम् = वाणी रूपी आभूषण। सततम् = नित्य। भूषणम् = आभूषण है।

🇮🇳हिन्दी-अनुवाद-परिष्कृत वाणी को मनुष्य का सर्वश्रेष्ठ आभूषण बतलाते हुए भर्तृहरि जी कहते हैं कि मनुष्य को वास्तव में न तो बाजूबन्द अलंकृत करते हैं, न चन्द्रमा के समान उज्ज्वल हार, न स्नान, न ही चन्दनादि का लेप (क्रीमादि), न फूल और न ही सजाये संवारे बाल अपितु परिष्कृत रूप में प्रयुक्त एक वाणी ही मनुष्य को भलीभान्ति अलंकृत करती है। शेष आभूषण तो निश्चित रूप से नष्ट हो जाते हैं, परन्तु वाणीरूपी आभूषण मनुष्य का नित्य आभूषण है।

🇮🇳भावार्थ यह है कि मधुर एवं परिष्कृत वाणी मनुष्य के लिए सौ आभूषणों का एक आभूषण है। जो मान-सम्मान परिष्कृतवाणी मनुष्य को दिला सकती हैं; वह मान-सम्मान दूसरा कोई आभूषण नहीं दिला सकता है।

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विद्या नाम नरस्य रूपमधिकं, प्रच्छन्नगुप्तं धनम्,

 विद्या भोगकरी यशः सुखकरी, विद्या गुरूणां गुरुः।

 विद्या बन्धुजनो विदेशगमने, विद्या परा देवता,

विद्या राजसु पूज्यते नहि धनं, विद्याविहीनः पशुः।। 21॥ 

🇮🇳अन्वयः-विद्या नाम नरस्य अधिकं रूपम्। प्रच्छन्नगुप्तं धनम्, विद्या भोगकरी यशः सुखकरी, विद्या गुरूणां गुरुः, विद्या विदेशगमने बन्धुजनः, विद्या परादेवता। विद्या राजसु पूज्यते, धनं नहि, विद्याविहीनः पशुः (भवति)।

🇮🇳शब्दार्थ एवं व्याकरण-विद्यानाम = विद्या नामक प्रसिद्ध धन, नरस्य = मनुष्य का। अधिकं रूपम् = सर्वाधिक रूपवर्धक तत्त्व है। प्रछन्नगुप्तम् = भली-भान्ति छिपा हुआ। धनम् = धन। विद्याभोगकरी = विद्या भोगों की दात्री है। यशः सुखकरी = यश और सुख को देने वाली है। विद्या = ज्ञान ही। गुरूणाम् = गुरुओं की भी। गुरुः माननीया है। विद्या = ज्ञान ही। विदेशगमने = विदेश जाने पर। बन्धुजनः = सगे-सम्बन्धी। विद्या = ज्ञान ही। परादेवता = परम परमेश्वर है। विद्या = ज्ञान ही। राजसु = राजाओं में। पूज्यते = सम्मानित होती है। धनंम् = धन-दौलत। नहि = नहीं। विद्याविहीनः (विद्यया विहीनः विद्याविहीनः तृतीया त० पु० समास) ज्ञानरहित मनुष्य। पशुः (भवति) जानवरों के समान होता है। 

🇮🇳हिन्दी-अनुवाद-विद्याधन के महत्त्व को प्रकट करते हुए भर्तृहरि जी कहते हैं कि विद्या ही मनुष्य का सर्वश्रेष्ठ सौन्दर्य है, वही छिपा हुआ गुप्त धन है, विद्या ही भोगों की दात्री तथा यश और सुख को देने वाली है। विद्या गुरुओं की भी गुरु मानी जाती है यानि गुरुत्व विद्या से ही सम्भव है। विदेश जाने पर विद्या ही अपने सगे सम्बन्धियों की तरह साथ देती है। इसलिए यही सबसे बड़ा देवता है। राजाओं के पास विद्या का ही मान-सम्मान होता है धन का नहीं। विद्या से रहित मनुष्य तो पशु ही होता है।

🇮🇳भावार्थ- यह कि विद्या समस्त मनोवाञ्छित फलों की दात्री होने के कारण सर्वथा ग्राह्य एवं अर्जन करने योग्य है।

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क्षान्तिश्चेत्कवचेन किं किमरिभिः क्रोधोऽस्ति चेद्देहिनाम्,

 ज्ञातिश्चेदनलेन किं यदि सुहृद्दिव्यौषधैः किं फलम्। 

किं सर्यदि दुर्जनाः किमु धनैर्विद्याऽनवद्या यदि

ब्रीडा चेत्किमुभूषणैः सुकविता यद्यस्ति राज्येनकिम्।। 22।।

🇮🇳 अन्वयः-देहिनां क्षान्तिः चेत् कवचेन किम्, क्रोधः चेत् अस्ति अरिभिः किम् ? ज्ञातिः चेत् अनलेन किम् ? यदि सुहृत् दिव्यौषधैः किं फलम्। अनवद्या विद्या यदि धनैः किमु, ब्रीडा चेत् किमुभूषणैः । यदि दुर्जनाः सपैः किम् ? यदि सुकविता अस्ति राज्येन किम् ?

🇮🇳शब्दार्थ एवं व्याकरण-देहिनाम् = शरीरधारियों के पास। क्षान्तिः = सहनशीलता (क्षमा)। चेत् = यदि। कवचेन किम् = तो कवच की क्या आवश्यकता। क्रोधः = गुस्सौं । चेत् = यदि। अस्ति = है। अरिभिः किम् = तो शत्रुओं की क्या आवश्यकता। ज्ञातिः = सजातीय लोग। चेत् = यदि हैं। अनलेन किम् = तो आग की क्या आवश्यकता। यदि = यदि। सुहृत् = मित्र हैं। दिव्यौषधैः r: = अत्यन्त प्रभावशाली औषधियों का। किम् = क्या। फलम् = प्रयोजन। अनवद्या-अनिन्दनीया। विद्या = ज्ञान। धनैः किमु = धन से क्या प्रयोजन। ब्रीडा = लज्जा। चेत् = यदि। किमुभूषणैः आभूषणों की क्या आवश्यकता। यदि दुर्जनाः = यदि दुष्ट हों। सर्पः किम् = सरों की क्या आवश्यकता। यदि सुकविता यदि अच्छी कविता। अस्ति है। राज्येन किम् = तो राज्य की क्या आवश्यकता।

🇮🇳हिन्दी-अनुवाद-सद्गुणों एवं सद् वस्तुओं के होने पर अन्य सांसारिक वस्तुओं की आवश्यकता ही नहीं होती है। इस तथ्य पर प्रकाश डालते हुए भर्तृहरि जी कहते हैं कि यदि मनुष्यों के पास क्षमा नामक गुण हो तो कवच की कोई आवश्यकता नहीं रह जाती क्योंकि फिर लड़ाई होने का प्रश्न ही नहीं उठता, यदि किसी को क्रोध आता हो तो उसे अन्य किसी शत्रु की आवश्यकता ही नहीं रह जाती अर्थात् क्रोध मनुष्य का सबसे बड़ा शत्रु है। यदि सजातीय लोग हों तो फिर आग की कोई आवश्यकता नहीं है क्योंकि ताने-वाने मार कर जलाने का काम वे बखूबी कर देते हैं। यदि किसी के पास अच्छा मित्र है तो फिर किसी प्रभावशाली औषधि की आवश्यकता नहीं है क्योंकि अच्छे मित्रों के साथ रहकर मनुष्य सदैव प्रसन्न रहता है। यदि किसी के पास प्रशंसनीया विद्या है तो फिर उसे धन की कोई आवश्यकता नहीं होती क्योंकि सुविद्या के प्रभाव से वह कभी भी और कहीं भी धन पा सकता है। यदि किसी के पास लजा नामक गुण है तो फिर किसी भी आभूषण की आवश्यकता नहीं रह जाती। यदि दुर्जनों का संग हो तो फिर सर्यों की आवश्यकता नहीं रह जाती क्योंकि दुर्जन ही उनकी कमी पूरी कर देते हैं। यदि किसी को सुकाव्य रचना आती हो तो फिर राज्य की भी कोई आवश्यकता नहीं रह जाती क्योंकि सुकाव्य रचना से यश एवं धन आदि सभी कुछ मिल जाता है।

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Comments

  1. Name Priyanka devi,Major History, Ser No 30...

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  2. Sonali dhiman political science Sr. no. 19

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  3. Taniya sharma
    Sr no. 21
    Pol. Science

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  4. Name Akshita Kumari Major Political Science Sr. No. 70

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  5. Sejal kasav
    Major sub.- pol Science
    Minor sub., hindi
    Sr.no..---01

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  6. Monikakalia
    Sr.no23
    Major history

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  7. Monikakalia
    Sr.no23
    Major history

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  8. Name Sejal Mehta
    Sr no 33
    Major Hindi
    Minor History

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  9. Neha Devi
    Major History
    Sr no 62

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  10. Anjli
    Major-Political science
    Minor - history
    Sr.no - 73

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  11. Shivani Devi
    Sr no 46
    Major Hindi
    Minor history

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  12. Sujata sharma
    Major- history
    Sry. No. 8

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  13. ektaekta982@gmail.com
    Name - varsha Devi Pol 24

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  14. Name_ Shivani
    Sr.no.11
    Major Hindi

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  15. Akriti choudhary
    Major history
    Sr.no 11

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  16. Rahul Kumar
    Major- history
    Sr no. 92

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  17. Poonam devi
    Sr no 23
    Major political science

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  18. Name -Riya
    Major -History
    Sr. No. -76

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  19. Major political science.
    Sr.no 60.

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  20. Name Simran kour
    Sr no 36
    Major history

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  21. Mamta Bhardwaj
    Sr no 01
    Major history

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  22. Taniya sharma
    Sr no.21
    Pol. Science

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  23. Chetan choudhary Major pol science minor Hindi sr no 13

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  24. Name= SUO.Shubham Singh

    90 UPBN NCC
    Ballia

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