नीतिशतक 1️⃣1️⃣🕉️1️⃣2️⃣🕉️1️⃣3️⃣

 🕎नीतिशतक 1️⃣1️⃣🕉️1️⃣2️⃣🕉️1️⃣3️⃣🕎

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शिरः शार्वं स्वर्गात्पशुपतिशिरस्तः क्षितिधरम्, 

महीध्रादुत्तुङ्गादवनिमवनेश्चापि जलधिम्। 

अधोऽधो गङ्गेयं पदमुपगता स्तोकमथवा,

विवेकभ्रष्टानां भवति विनिपातः शतमुखः॥11॥ 

🇮🇳अन्वयः- इयं गङ्गा स्वर्गात् शार्वं शिरः पशुपतिशिरस्तः क्षितिधरम्, उत्तुङ्गात् महीध्रात् अवनिम्, अवनेः च अपि जलधिम्। (एवम्) अधः अधः स्तोकं पदं उपगता। अथवा विवेकभ्रष्टानां शतमुखः विनिपातः भवति ।

🇮🇳शब्दार्थ एवं व्याकरण-इयम् = यह । गंगा = जाह्नवी (सुरसरित्) । स्वर्गात् = स्वर्ग से। शार्वं शिरः + अण्) शिव के सिर को। पशुपतिशिरस्तः = शिव के सिर से। क्षितिधरम् = (क्षितिं पृथ्वी धरति इति क्षितिधरः तम्) हिमालय पर्वत को प्राप्त हुई। उन्तुगात्ः = ऊँचे। महीध्रात् = पर्वत से। अवनिम् = पृथ्वी को। अवनेः च अपि = और पृथ्वी से भी। जलधिम् = समुद्र को प्राप्त हुई। (एवम् = इस प्रकार)अधः अधः = नीचे से और नीचे। स्तोकं पदम् = तुच्छ स्थान को। उपगता = प्राप्त हुई। अथवा = या यूँ कहिये कि। विवेकभ्रष्टानाम् = भले-बुरे की पहचान न कर सकने वालों का। शतमुखः = सैंकड़ों प्रकार से। विनिपातः = पतन। भवति = होता है।

🇮🇳हिन्दी-अनुवाद-विवेकहीन व्यक्ति का निरन्तर पतन होता रहता है; इस तथ्य को गंगा के स्वर्ग से समुद्र तक नीचे आने के उदाहरण से समझाते हुए भर्तृहरि जी कहते हैं कि यह गंगा स्वर्ग से शिव के सिर पर आयी पुनः शिव के सिर से हिमालय पर्वत को प्राप्त हुई। उस ऊँचे पर्वत से यह पृथ्वी पर पहुँची और पृथ्वी से समुद्र में जा मिली। इस प्रकार यह गंगा क्रमशः निम्न-निम्न स्थान को प्राप्त होती गयी। वस्तुतः विवेकहीन मनुष्यों का पतन भी इसी प्रकार सैंकड़ों तरह से होता है।

🇮🇳भावार्थ यह है कि जैसे स्वर्ग से क्रमश: नीचे ही नीचे आती हुई गंगा समुद्ररूपी निम्नतम गर्त में समा गयी; उसी प्रकार मूर्ख व्यक्ति भी एक के बाद दूसरी बुराई में फँसता जाता है और निकृष्टतम दशा को प्राप्त हो जाता है।

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शक्यो वारयितुं जलेन हुतभुक् छत्रेण सूर्यातपः

 नागेन्द्रो निशिताङ्कुशेन समदो दण्डेन गोगर्दभौ। 

व्याधिर्भेषजसंग्रहैश्च विविधैर्मन्त्रप्रयोगैर्विषम्,

सर्वस्यौषधमस्ति शास्त्रविहितं मूर्खस्य नास्त्यौषधम्॥12॥ 

🇮🇳अन्वयः-हुतभुक् जलेन वारयितुं शक्यः, सूर्यातपः छत्रेण, समदः नागेन्द्र; निशिताङ्कुशेन, गोगर्दभौ दण्डेन, भेषजसंग्रहै: व्याधिः, विविधैः मन्त्रप्रयोगैः विषं च। सर्वस्य शास्त्रविहितम् औषधम् अस्ति मूर्खस्य औषधं नास्ति।

🇮🇳शब्दार्थ एवं व्याकरण-हुतभुक् = (हुतं भुनक्ति इति हुतभुक्) अग्नि। जलेन = पानी से। वारयितुम् शक्यः = शान्त की जा सकती है। सूर्यातपः = (सूर्य + आतपः दीर्घसन्धि) सूर्य की धूप। छत्रेण = छाते से। समदः = (मदेन सहितम् = समदः) मदमस्त । नागेन्द्रः = (नाग + इन्द्रः गुण सन्धि) हाथी। निशिताङ्कुशेन = (निशितेन अंकुशेन) तीखे अंकुश के द्वारा (वश में किया जा सकता है)। गोगर्दभौ = (गौः च गर्दभः च इतरेतर द्वन्द्वसमास) गाय/बैल तथा गधे को। दण्डेन = डण्डे से। भेषजसंग्रहैः = औषधियों के संग्रह से (प्रयोग से)। व्याधिः = रोग। विविधैः = नाना प्रकार के। मन्त्रप्रयोगैः: = मन्त्राणां प्रयोगः मन्त्रप्रयोगः तैः मन्त्रप्रयोगैः षष्ठीतत्पु० समास) मन्त्रों के प्रयोग से। विषं च = सर्प आदि का विष (दूर किया जा सकता है।)। सर्वस्य = सभी रोगों की। शास्त्रविहितम् = शास्त्रों में बतलायी गयी।औषधम् = दवाई। अस्ति = है। (परन्तु) मूर्खस्य मूर्ख को समझाने का। औषधम् = उपाय। नास्ति = नहीं है। (न + अस्ति दीर्घसन्धि)।

🇮🇳हिन्दी-अनुवाद-मूर्ख की दुःसाध्यता का वर्णन करते हुए भर्तृहरि जी कहते हैं कि अग्नि को जल से बुझाया जा सकता है, धूप को छाते से रोक सकते हैं, मदमस्त होथी को तेज अंकुश से वश में कर सकते हैं। गाय एवं गधे आदि पशुओं को डण्डे से नियन्त्रित किया जा सकता है। रोग को विविध दवाइयों के प्रयोग से तथा विष को विभिन्न मन्त्रों के प्रयोग से दूर कर सकते हैं। इस प्रकार शास्त्रों में सभी समस्याओं के समाधान वर्णित हैं परन्तु मूर्ख को सन्मार्ग पर लाने का कोई उपाय वर्णित नहीं है।

🇮🇳भावार्थ यह है कि किसी भी प्रकार की समस्या से जैसे-कैसे निपटा जा सकता है परन्तु मूर्ख को समझाना अत्यन्त कठिन कार्य है।

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साहित्यसंगीतकलाविहीनः, 

साक्षात्पशुः पुच्छविषाणहीनः ।

तृणं न खादन्नपि जीवमान

स्तदभागधेयं परमं पशूनाम्॥13॥

 🇮🇳अन्वयः-साहित्यसंगीतकलाविहीनः (नरः) पुच्छविषाणहीनः साक्षात्पशुः । तृणं न खादन् अपि जीवमानः तत् पशूनां परमं भागधेयम्।

🇮🇳शब्दार्थ एवं व्याकरण-साहित्यः = काव्यशास्त्र आदि। संगीतम् नृत्य-गीत एवं वाद्य। कलाः = मूर्तिकला, चित्रकलादि। विहीनः = रहित (मनुष्य)। पुच्छविषाणहीनः = पूँछ एवं सींगों से रहित। साक्षात् = प्रत्यक्ष या मूर्तिमान् । पशुः = गाय-भैंस आदि जानवर। तृणम् = घास को। न खादन् = न खाता हुआ।अपि--भी। जीवमानः = (/जीव् + शानच् प्रत्यय) जीता हुआ। तत् = वह। पशूनाम् = गाय-भैंस आदि पशुओं का। भागधेयम् = सौभाग्य।

🇮🇳हिन्दी-अनुवाद-ललित कलाओं की प्रशंसा करते हुए भर्तृहरि जी कहते हैं कि साहित्य, संगीत तथा अन्य उपयोगी कलाओं से विहीन मनुष्य तो मानों पूंछ एवं सींग से रहित निरा पशु ही होता है। घास न खाकर भी वह नररूपी पशु जीवित रहता है, यह पशुओं का सौभाग्य है। (अन्यथा घास के लिए सर्वत्र त्राहि-त्राहि मच जाती।) 

🇮🇳भावार्थ यह कि मनुष्य की उपयोगिता इसी में है कि वह किसी न किसी कला का ज्ञाता अवश्य हो।

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Comments

  1. Poonam devi
    Sr no 23
    Major political science

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  2. Akriti choudhary
    Major history
    Sr.no 11

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  3. Aarti,
    Major history,
    Minor hindi,
    Sr. no. 5

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  4. Name Shivani Devi
    Sr no 46
    Major Hindi
    Minor history

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  5. Sejal kasav
    Major sub.- pol science
    Minor sub.-hindi
    Sr.no.-01

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  6. Tanvi Kumari
    Sr. No. 69
    Major. Pol. Science

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  7. Priyanka Devi
    Sr.no.23
    Major history

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  8. Mehak
    Sr.no.34
    Major.political science

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  9. ektaekta982@gmail.com
    Varsha Devi Pol 24

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  10. Sr. No.49
    Major- political science
    Minor- history

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  11. Sonali dhiman political science Sr. no . 19

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  12. Name -Riya
    Major -History
    Sr. No. -76

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  13. Divya Kumari
    Sr.no 60.
    Major pol science.

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  14. Name Akshita Kumari Major Political Science Sr. No. 70

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  15. Vishal bharti sr no 16 major political science

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  16. Pallvi choudhart
    Major- pol. Sc
    Minor- history
    Sr no. -72

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