✡️✡️विषकन्या✡️✡️

हमारे संस्कृत-साहित्य में मुझे "मुद्राराक्षस" नामक विशाखदत्त रचित नाटक में विषकन्या प्रयोग की जानकारी प्राप्त हुयी । इसका प्रयोग शत्रु को समाप्त करने के लिये किया जाता था । खोज करने पर पता चला कि ऐसी विषकन्यायें दो प्रकार की होती थीं । १- तत्काल परिणाम देने वाली, और २- कालान्तर में प्रभावी ।। यहाँ भी दो स्थितियाँ हैं -- मानव-निर्मित और नैसर्गिक । प्रत्येक का प्रमाण नहीं दे पाऊँगा, फिर भी प्रयास कर सकता हूँ । १- मानव-निर्मित --- सम्भवतः आयुर्वेद या चाणक्य ने (अर्थशास्त्र पुस्तक में) यह निर्देशित किया है -- "कोई भी कन्या जब उत्पन्न होती है उसी दिन से उसे नशीली वस्तु और क्रमशः मात्रा बढ़ाते हुए विष प्रयोग(सेवन) की ओर ले जाते हैं । यदि वह बच जाती है और स्वास्थ्य सब ओर से सुन्दर रहता है तब उसका सम्पूर्ण शरीर विषमय हो जाता है ।" ऐसी कन्यायें राजा लोगों के यहाँ विशेष प्रकार से सुरक्षित रखी जाती थीं । समय पर इनका प्रयोग शत्रुपक्ष का समाचार प्राप्त करने एवं शत्रु(राजा) को नष्ट करने के लिए किया जाता था । इससे तत्काल परिणाम भी मिलता था ।। २- नैसर्गिक(प्राकृतिक) -- भारतीय ज्योतिष शास्त्र में ऐसे जन्म-समय के योगों का वर्णन मिलता है जिनमें उत्पन्न कन्याओं का प्रबल वैधव्य-योग होता है । कहीं कहीं ऐसा भी उल्लेख है कि कि ये जिस घर में उत्पन्न होती हैं वह घर और जिस घर में (विवाह होकर) जाती हैं दोनों स्थानों को नष्ट कर देती हैं । कुछ योग इसप्रकार से हैं -- (अ) द्वितीया तिथि, शनिवार और श्लेषा नक्षत्र में जन्म हो । (आ) सप्तमी तिथि, मंगलवार, और शतभिषा नक्षत्र । (इ) त्रयोदशी तिथि, रविवार और कृत्तिका नक्षत्र । (ई) जन्म के समय लग्न में शनि, पाँचवें सूर्य और नौवें स्थान में मंगल हो । (उ) इसी प्रकार कुछ माङ्गलिक-योग वाली कन्यायें भी इस श्रेणी में आती हैं । (ऊ) स्कन्दपुराण-नागरखण्ड पूर्वार्ध - शर्मिष्ठातीर्थ प्रसङ्ग में दिया है कि -"सूर्य के चित्रा नक्षत्र पर रहते, सोमवार और चतुर्दशी के योग में जन्म लेने वाली विषकन्या होती है । इससे पाणिग्रहण करनेवाले पुरुष की छह(६) महीने में मृत्यु हो जाती है । जिस घर में जन्म होता है उसे छह महीने में धन से रहित कर देती है " इत्यादि । इनका परिणाम काल की अपेक्षा रखता है अतः परिस्थिति के अनुसार इनका भी प्रयोग होता था ।। अब वर्तमान समय में ऐसा होता है या नहीं, कह नहीं सकते ।।

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