✡️मांडूक्य उपनिषद्

 मांडूक्य उपनिषद्- यह अल्पाकार उननिषद् है जिसमें कुल

12 खंड या वाक्य हैं। इसका संपूर्ण अंश गद्यात्मक है जिसे

मंत्र भी कहा जाता है। इस उपनिषद में ओंकार की मार्मिक

व्याख्या की गई है। ओंकार में तीन मात्रायें हैं, तथा चतुर्थ

अंश 'अ- मात्र होता है। इसके अनुरूप ही चैतन्य की चार

अवस्थाएं हैं- जागरित, स्वप्न, सुषुप्ति एवं अव्यवहार्य दशा।

इन्हीं का आधिपत्य धारण कर आत्मा भी चार प्रकार का

होता है- वैश्वानर, तैजस, प्राज्ञ तथा प्रपंचोपशमरूपी शिव ।

इसमें भूत, भविष्य, वर्तमान तीनों कालों से अतीत सभी भाव

ओंकार स्वरूप बताये गये हैं। इसका संबंध 'अथर्ववेद' से

है। इसमें यह बतलाया गया है कि ओंकार ही आत्मा या

परमात्मा है। इस पर शंकराचार्य के दादागुरु गौडपादाचार्य ने

मांडूक्यकारिका नामक सुप्रसिद्ध भाष्य लिखा है।


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