कणाद

 कणाद- वैशैषिक दर्शन के प्रवर्तक। उनके कणाद, 

कणभक्ष,कणभुक्, उलूक, काश्यप, पाशुपत आदि विविध नाम 

हैं।इनके आधार पर ये काश्यपगोत्री उलूक मुनि के पुत्र सिद्ध

होते हैं। एक जनश्रुति के अनुसार वे सड़क पर गिरे हुए या

खेतों में बिखरे हुए अनाज के कणों का भोजन करते थे।

इसलिये वे 'कणाद' कहलाये। सूत्रालंकार में उन्हें "उलूक"

कहा गया है, क्योंकि वे रात्रि में आहार की खोज में श्रटकते

थे। "वायुपुराण' के अनुसार कणाद का जन्म प्रभास क्षेत्र में

हुआ था और वे अवतार तथा प्रभासनिवासी आचार्य सोमशमन

 के शिष्य थे। उदयनाचार्य ने अपने "किरणावली" ग्रन्थ में उन्हें 

कश्यप-पुत्र माना है। पाशुपत-सूत्र में कणाद को पाशुपत कहा ग

है। एक जनुश्रति के अनुसार भगवान शिव से साक्षात्कार होने पर

 उनकी कृपा और आदेश से कणाद ने वैशेषिक दर्शन की रचना 

की। रचनाकाल बुद्ध से आठ सदी पूर्व माना जाता है। इसमें 10 

अध्याय हैं, और हर अध्याय में दो आहनिक हैं। वैशेषिक दर्शन में

 पदार्थ के सामान्य और विशेष गुणों की चर्चा एवं परमाणुवाद के

 सिद्धान्त का प्रतिपादन है ।

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