वर्णों के उच्चारण स्थान तथा विसर्ग की गति


अष्टौ स्थानानि वर्णांनामुरः कण्डः शिरस्तथा।
जिह्वामूलं च दन्ताश्च नासिकौष्ठौ च तालु च ।। १३ ।।

अन्वयः- वर्णानां स्थानानि अष्टी- उर: कण्ठः शिरः तथा जिह्वामूलं च दन्ताः च नासिका ओष्ठौ च तालु च।

शब्दार्थ:-- अष्टौ - आठ, स्थानानि - उच्चारण है, वर्णानाम् वरणों के, उरः - उरः प्रदेश, कण्ठः - कण्ठ)
शिरः - सिर (मूर्धा) तथा - और, जिह्वामूलम् - जिह्वामूल। दन्ताः च- और दान्त, नासिका- नासिका, नाक, ओष्ठौ-ओठ, तालु च -और तालु

हिंदी- वर्णों के उच्चारण के स्थान आठ हैं-उरः, कण्ठ, शिर, जिद्वामूल, दन्त, नासिका, ओष्ठ और तालु ।। १३ ।।

व्याख्या- शिंक्षा ग्रन्थों में वर्णोच्चारण के स्थान आठ कहे गए हैं ये हैं- उर, कण्ठ, शिर (मूर्धा) जिह्वामूल,
दन्त, नासिका, ओष्ठ और तालु।

ओभावश्र्य विवृत्तिश्च पशसा रेफ एव च ।
जिह्वामूलमुपध्मा च गतिरष्टविधोष्मणः ॥ १४ ।

अन्वयः- ऊष्मणः गतिः अष्टविधा- ओभाव: च विवृत्ति: च श-प सा रेफ एव च जिहवामूलम् उपध्या च|

शब्दार्थः- ऊष्मणः = ऊष्मा के (विसर्ग के), गति: गति, प्रकार अष्ट विधा - आठ प्रकार, ओभाव: - ओ हो जाना, विवृत्तिः = जहाँ सन्धि का अभाव हो, श-प-सा श, प, स हो जाना, रेफ रेफ होना, जिह्वामूलम् -जिह्वामूल होना, उपध्मा - उपध्मानीय होना।

हिंदी- ऊष्मा की अर्थात् विसर्ग की आठ प्रकार की गति (स्थिति) होती है - ओभाव, विवृत्ति अर्थात् सन्धि का अभाव, (लोप हो जाना), श- ष-स. हो जाना, रेफ होना, जिह्वामूलीय तथा उपध्मानीय होना।

व्याख्याः- विसर्ग की सन्धि के नियमों के अनुसार विसर्गों की आठ प्रकार की गति होती है। विसर्गों को आठ-प्रकार के परिवर्तन होते हैं-

ओभाव- विसर्ग को ओ होना-- जैसे-शिवः + वन्द् शिवो वन्द्य: ।
विवृत्ति- दो स्वर वर्णों के मध्य अवकाश को विवृत्ति कहते हैं- जैसे क: * ईश - क ईश ।
विसर्ग को श्- हरिः शेते - हरिश्शेते।

विसर्ग को ष्- आवि: * कृतम् आविष्कृतम् ।

विसर्ग को स्- क: + क: = कस्क:।

विसर्ग को र्- अह: * पति: - अहपति।

जिद्वामूलीय होना- वृक्षः * करोति वृक्ष :x करोति।

उपध्मानीय होना- वृक्षः + 

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