शूद्रक - "मृच्छकटिक"
शूद्रक - "मृच्छकटिक" नामक प्रख्यात रूपक के कर्ता। उक्त
प्रकरण के एक श्लोक के अनुसार शूद्रक एक महान् क्षत्रिय
राजा थे। ऋ्वेद, सामवेद, गणितशास्त्र, ललितकला, तथा
हाथियों को प्रशिक्षित करने की विद्या उन्हें ज्ञात थी। अश्वमेघ
में यज्ञ भी आपने किया था । आपकी आयु सौ वर्ष और दस
दिन की रही। आखिर स्वयं होकर आपने अग्निप्रवेश किया।
प्राचीन इतिहास-पुराणों में शूद्रक नामक एकाधिक राजा है।
कहते है कि शूदक याने संवसर संस्थापक विक्रमादित्य थे।
राजशेखर ने एक शूद्रक का उल्लेख किया है जिनके दरबार
में रामिल और सोमिल नामक दो कवि थे और इन दोनों
कवियों ने मृच्छकटिक की रचना की। कालिदास के
मालविकाग्निमित्र में सौमिल्लक का उल्लेख है। इस आधार
पर कालिदासपूर्व काल के राजा होने चाहिये।
कथासरित्सागर में भी एक शूद्रक का उल्लेख है जिन्हें
सौ वर्ष की आयु मिली थी। ये शूद्रक हैं आभीर राजा
शिवदत्त (सन् 250) । हाल ही में भास कृत नाटक के रूप
में दो नाटक मिले हैं। उनमें दरिद्रचारुदत्त नामक चार अंक
का अपूर्ण नाटक है। इसमें और मृच्छकटिक के पूर्व भाग
में बहुत साम्य है। पंडितों का तर्क है कि मृच्छकटिक भास
की या अन्य किसी की सम्पूर्ण कृति थी। दरिद्रचारुदत्त, उसी
का संक्षेप है।
बाण ने कादंबरी में और दंडी ने दशकुमारचरित में शूद्रक
का उल्लेख किया है। कुछ पंडितों ने स्कंद-पुराण का आधार
लेकर कहा है कि आंध्रभृत्य-वंश के संस्थापक शिमुक एवं
शूद्रक एक ही थे। पं. चंद्रबली पांडे के अनुसार शूद्रक ही
वासिष्ठीपुत्र पुलुमायी हैं। अतिसुंदरी-कथासार ग्रंथ में इंद्राणीगुप्त
का दूसरा नाम शूद्रक दिया गया है।
इन सारे मतमतांतरों से मृच्छकटिक की रचना किसने की
इसका निर्णय नहीं हो पाता। पर यह निशित है कि वह जो
कोई भी हो, दक्षिण भारत का था। इस नाटक में
"कर्नाटकलहप्रयोग" एवं दक्षिण के द्रविड, चोल आदि का
उल्लेख है। इस नाटककार को संस्कृत के साथ प्राकृत भाषा
का और ज्योतिष एवं धर्मशास्त्र का अच्छा ज्ञान था। वह
शिवभक्त और योगाभ्यासी भी था।कवि के रूप में शूद्रक,
भवभूति एवं कालिदास की बराबरी के थे।
उदयति हि शशाङ्कः कामिनीगण्डपाण्डुः
ग्रहगणपरिवारो राजमार्गप्रदीपः ।
तिमिर-निकरमध्ये रश्मयो यस्य गौराः
सुतजल इव पके क्षीरधाराः पतन्ति ।।
अर्थ- कामिनी के कपाल समान सफेद, ग्रहगण से घिरा,
राजमार्ग का दीप चंद्रमा उदित हुआ है। घने अन्धःकार में
सफेद किरण, रेती के कीचड़ में दूध की धारा जैसे बरस रहे हैं।
कुछ सुभाषित देखिये
अल्पक्लेशं मरणं दारिद्रययमनन्तकं दुखम् ।
अर्थ- मरने में दुख थोडा सा होता है, तो दारिद्र में दुख
समाप्त ही नहीं होता।
पुरुषेषु न्यासाः निक्षिप्यने न पुनर्गहिषु ।
अर्थ- विश्वास पर ही धरोहर रखी जाती है, मकान की मजबूती पर नहीं।
साहसे श्रीः प्रतिवसति ।
अर्थ- साहस में संपत्ति रहती है।
संस्कृत के सुप्रसिद्ध प्राचीन नाटककारों में कालिदास एवं
भास के समान शूद्रक का स्थान अत्युच्च है। उनका मृच्छकटिक
नामक नाटक सार्वकालिक लोकाभिरुचि की कृति बन पडी
है। नाट्यशास्त्र की विहित मर्यादा का उल्लंघन करते हुए
ने शूद्रक इस नाटक की रचना की है।
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